होती है सहरे हलचल सी दिल में
काश मिल जाये तू किसी महफ़िल में...
दर बदर तुझे ढूँढू मैं इस कदर
अब ना मुझे होश है न खुद की ख़बर..
ऐ माशूक़ तुझे क्या इल्म तुझे क्या खबर
बेतहाशा तुझे चाहा था मैंने किस कदर...
मय का सहारा लूँ की तेरी आँखों में कर लूँ बसर
ना जिंदगी में तू होती न टूटता ये कहर ...
तेरे अक़्स को हकीकत करूँ मौका मिले अगर
यूँ तो रोज आती है शाम रोज होती है सहर ..
तेरी यादों के खिदमत में पेश हैं मेरे .
दिन और रातों के हर लम्हे और चारों पहर ...
जिंदगी मुक्क़मल कर दो कुछ इस कदर
खुदा के बाद इबादत हो तेरी ऐ हमसफ़र ...
आपका : प्रकाश
Friends i have passion to write ...but how i write u can better judge me...plzz reply and if u really like my Gazals ..plz like urs friend -prakash.
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