साख से टूटे एक लावारिश पत्ते की तरह ,
रुला दिया किसी ने मुझे बच्चे की तरह !
ख्वाहिश थी आसमान में उडूं ,
बेख़ौफ़ पंछियों की तरह !
ज़माने ने सोने सा घर दे दिया ,
एक पिंजरे की तरह !
खामियां मैं सुधार लूँ ,
रुख बदलती हवाओं की तरह !
बेचैनियों को राहत दो ,
जख्में मरहम की तरह!
सफर बहुत हो चूका
टूटते हुए तारे की तरह !
रुला दिया किसी ने मुझे बच्चे की तरह !
ख्वाहिश थी आसमान में उडूं ,
बेख़ौफ़ पंछियों की तरह !
ज़माने ने सोने सा घर दे दिया ,
एक पिंजरे की तरह !
खामियां मैं सुधार लूँ ,
रुख बदलती हवाओं की तरह !
बेचैनियों को राहत दो ,
जख्में मरहम की तरह!
सफर बहुत हो चूका
टूटते हुए तारे की तरह !
Nice one
ReplyDeleteThank you.
DeleteUmda hai
ReplyDeleteधनयवाद जी .
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