ख़ुशियाँ हो तो बाँट भी लूँ
इस गम को कैसे बाटूँ मैं ...
दिन जैसे तैसे काट भी लूँ
बेबसी के लम्हे कैसे काटूँ मैं...
चेहरे पर ख़ुशी दिखाने को है
झाँको अंदर गम है कितना...
तुम्हारे जुल्म कभी तो कम हो
दर्द सहूं चुप हो कर कितना ...
मंज़र सोच के ख़ामोश हैं लब
ज़वाब तो हम भी दे सकते हैं...
कस्ती की पतवार क्या छुटी
मझधार भी हावी होने लगे हैं...
एक पल मेरा भी होगा अपना
जब पूरा होगा मन का सपना...
चलने पर मंजर मिल ही जायेगा
देखते हैं और वक़्त लगेगा कितना...
आपका : प्रकाश
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