Monday, October 30, 2017

(By my pen) वाह री तन्हाई...!






वाह री तन्हाई ...
दुनिया ने तो मुझे ठुकराया हीं
तूने भी रूठ कर घूघंट तानी ...
घूंघट हटा और मुझमें देख
आंसूओं का कुहरा...
पसंद आये तो सहला थोड़ा
अपनी आहोश में ले ले
और बहका थोड़ा...
दुनिया ने तो मुझसे ..
कब का है मुँह मोड़ा
कब का है मुँह मोड़ा ...
                 
 

   आपका : प्रकाश



(मित्रों एक पाठक के अमूल्य सुझाव पर
"Wah ri tanhai" का परिवर्तित रूप
आपसे साझा कर रहा हूँ उम्मीद है आपको
पसंद आएगी )


Saturday, October 28, 2017

फिर मोहब्बत हो जाए तो...


 लिबाज़ो मन दोनों से हूँ मैं निहायत सादा सा
 तेरी जुबां कुछ और आँखें कुछ और बताये तो ..

कोशिशें यही करता रहा सम दिखूं सम बन जाऊं
बाद भी उसके अल्फ़ाज़ चुभें और सताएं तो...

शिद्दत से चाहा, सराहा, नवाज़ा है मैंने तुझको
खौफ़ में दिल है रक़ीब कोई और बन जाए तो...

प्रित के पांव रखे हर जगह संभाल कर हमने
नाराज़ क्यों रहबर मेरा ख़ता कोई बतलाए तो...

यूँ तो सबके सफर, मक़सद, मिज़ाज़ अलग हैं
मैं भी तू भी मतलबी गर मंज़र एक हो जाए तो...

गैरों के इशारे पर कितना खुद को बचा पायेगा
ऐसा ना हो मुफ़लिसी में फिर मोहब्बत हो जाए तो...

                         "मौलिक व अप्रकाशित" 

Thursday, October 26, 2017

गुज़ारिशें फ़रियाद...


  गुज़ारिशें फ़रियाद...

कुछ मजबूरिया थीं
ना मुँह मोड़ने वाली 
परेशानीयों के साथ...

इरादा तो था कि
चले कुछ और कदम 
तेरे साथ यूँ हीं
तेरी राहे मंज़िल मिल जाने तक...

ऐसा कभी तो हुआ होगा 
मेरे सपनों ने तुझे 
ज़रूर छुआ होगा...

सफर तन्हा हो 
या हो एक साथ 
खुश रहे तू सदा  
हर दिन हर एक रात...

यही है अब रब से
गुज़ारिशें फ़रियाद...

      आपका : प्रकाश ! 

Wednesday, October 25, 2017

आख़िरी सफ़र..!


                आख़िरी सफ़र ...

 जीवन की आख़िरी सच्चाई से  पाला पड़ा,
दुखी होकर भी सच्चे मन से वहां जाना पड़ा!

सबकी आँखे नम थीं लब थे ख़ामोश,
मौत सा सन्नाटा था चीखें तबाही की सुनी!

सफ़ेद लिबाज़ में लिपटे थे सभी,
ऐसा मातम नहीं देखा  था कभी!

हिम्मत कर आँसूं न झलकने दिया  मैंने,
खामोश नज़रों से सबको देखा किया!

रो रो कर जब थक जाते चुप हो जाते,
फिर भभक - भभक कर रो उठते थे वो!

कैसी लीला है तेरी हे मेरे भगवान,
चुप करते हुए रो पड़ा मैं भी एक इंसान!

आख़िरी सफ़र था चार कन्धों की ज़रूरत,
एक कन्धा मैं खुद बना वाह रे कुदरत!

राम नाम सत्य है का जाप चलता रहा,
वो चार कन्धों के ऊपर काफ़िला पीछे चलता रहा!

सफ़र ख़तम होते हीं गंगा का किनारा मिला,
डुबकी लगा कर किनारे का सहारा मिला!

चन्दन की लकड़ी एक एक कर कोई सजता रहा,
सिर्फ अकेला वो लेट सके मचान वो बनता रहा!

जब वो लकड़ियों के मचान पर लेट गया,
रोक न सका खुद को गम के आँसूं रोता रहा!

फिर एक आग की लपट ने लपेट लिया उसको,
वो दर्द जो मैंने सबने सहा कहूँ मैं किसको!

एक दिन यही हष्र सबके साथ होना है,
तक़दीर के दामन में छुपा मौत का कोना है!


मित्रों सादर नमस्कार, अपने स्वयं के एक रिश्तेदार के देहांत होने पर पहली बार अंतिम संस्कार में मौजूद होने पर घर लौट के आने के उपरान्त जो भाव मन में उमड़े वो आप सभी से साझा कर रहा हूँ ...क्यूंकि मेरा मानना है कि मृत्यु जीवन का आख़िरी कड़वा सच है, एक दिन हम सभी को न चाहते हुए भी उसका सामना करना हीं होगा! मेरे भाव को समझने और पढ़ने के लिए आपका कोटि - कोटि आभार एवं धनयवाद !     
     

Tuesday, October 24, 2017

ख्वाबे हक़ीक़त !

         ख्वाबे हक़ीक़त

जैसा ख्वाबों में सोचा था कभी ,
हकीकत बनकर सामने है वो अभी !

मेरे ख्वाबों से ख्वाब जोड़ लिए उसने ,
इरादों की नींव पर ईंटें रख दी कई !

 कहता है की हिम्मत मत हार अब,
सफ़र बहुत हुआ मक़सद हासिल है अब !

उसे देखता हूँ तो जुनून भर आता है,
नूर में उसके ख़ुदा झलक जाता है !



मित्रों ये पंक्तियाँ किसी ख़ास व्यक्ति को समर्पित है !
                                     
                                      आपका :  प्रकाश
    

Monday, October 23, 2017

सहूँ मैं कितना ?



ख़ुशियाँ हो तो बाँट भी लूँ
इस गम को कैसे बाटूँ मैं ...

दिन जैसे तैसे काट भी लूँ 
बेबसी के लम्हे कैसे काटूँ मैं...

चेहरे पर ख़ुशी दिखाने को है 
झाँको अंदर गम है कितना...

तुम्हारे जुल्म कभी तो कम हो 
दर्द सहूं चुप हो कर कितना ...

मंज़र सोच के ख़ामोश हैं लब
ज़वाब तो हम भी दे सकते हैं...

कस्ती की पतवार क्या छुटी 
मझधार भी हावी होने लगे हैं...

 एक पल मेरा भी होगा अपना 
जब पूरा होगा मन का सपना...

चलने पर मंजर मिल ही जायेगा 
देखते हैं और वक़्त लगेगा कितना...
         
                     आपका :  प्रकाश







Sunday, October 22, 2017

सहरे हलचल ...!

  




होती है सहरे हलचल सी दिल में 
काश मिल जाये तू किसी महफ़िल में...

दर बदर तुझे ढूँढू मैं इस कदर  
अब ना मुझे होश है न खुद की ख़बर..


ऐ माशूक़ तुझे क्या इल्म तुझे क्या खबर  
बेतहाशा तुझे चाहा था मैंने किस कदर...

मय का सहारा लूँ की तेरी आँखों में कर लूँ बसर  
ना जिंदगी में तू होती न टूटता ये कहर  ...

तेरे अक़्स को हकीकत करूँ मौका मिले अगर  
यूँ तो रोज आती है शाम रोज होती है सहर  ..


तेरी यादों के खिदमत में पेश हैं मेरे  .
दिन और रातों के हर लम्हे और चारों पहर  ...

जिंदगी मुक्क़मल कर दो कुछ इस कदर 
खुदा के बाद इबादत हो तेरी ऐ हमसफ़र ...
                       आपका :  प्रकाश


Tuesday, October 17, 2017

हौसलेमंद हूँ मैं !





        
हौसलेमंद  हूँ  मैं 

मायूश नहीं हौसलेमंद हूँ मैं,
गिरा कई बार फिर खड़ा हूँ मैं!

पहाड़ों से सिख मिली इरादों को,
नदियों से सीखा हुनर मिल जाने का!

गहराई मुझमें सागरों जितनी,
गंगा सा निर्मल मन हो जाये!

जिस तरह तेज हवाओं को साखों ने सहा,
मैंने भी कई गम सहे कुछ ना कहा!

परेशानियों से समझौता मैं ना करूँगा,
तूफ़ान हो या आंधी सब सहूँगा!

पहले सिर्फ उलझे विचार किये,
अब सिर्फ सच और सच हीं कहूँगा!

हवाएं चलती हैं तेज चलती रहे गम नहीं,
तम्मना मंजिल की है मंजिल से कुछ कम नहीं!

                                      आपका  - प्रकाश

धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं।।

प्रिय मित्रों  
आप सभी को धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं।। कार्तिक माह की त्रयोदशी के दिन धनतेरस मनाया जाता है। दिवाली भारत का प्रमुख त्योहार है ये त्योहार पंचदिवसीय होता है। इसकी शुरुआत धनतेरस के दिन से होती है। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व होता है। धनतेरस के दिन पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन धन और आरोग्य के लिए मां लक्ष्मी के साथ भगवान धन्वंतरि और कुबेर की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार दिवाली से दो दिन पूर्व धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था।

इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान वो अपने साथ अमृत कलश और आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे। इसी कारण से भगवान धन्वंतरि को औषधी का जनक भी कहा जाता है। इस दिन सोना-चांदी आदि की खरीददारी करना शुभ माना जाता है। इसदिन घर पर विशेष पूजा करनी चाहिए क्योंकि इस दिन मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर आ जाती हैं तो हमेशा के लिए वहीं रुक जाती हैं। ये दिन सिर्फ धन की प्राप्ति के लिए ही नहीं मनाया जाता इस दिन को स्वास्थय जागरुकता का दिन भी कहा जाता है और अच्छे स्वास्थय की प्रार्थना की जाती है।  
आपका -  प्रकाश

Sunday, October 15, 2017

सफ़र

साख से टूटे एक लावारिश पत्ते की तरह ,
 रुला दिया किसी ने मुझे बच्चे की तरह !

ख्वाहिश थी आसमान में उडूं ,
 बेख़ौफ़ पंछियों की तरह !

ज़माने ने सोने सा घर दे दिया ,
 एक पिंजरे की तरह !

खामियां मैं सुधार लूँ ,
रुख बदलती हवाओं की तरह !

बेचैनियों को राहत दो ,
 जख्में मरहम की तरह!

सफर बहुत हो चूका
टूटते हुए तारे की तरह !








शुभ- विचार

शुभ- विचार

1) जिसके पास धैर्य है, वह जो कुछ इच्छा करता है, प्राप्त कर सकता है। – फ्रैंकलिन
2) दो धर्मों का कभी भी झगड़ा नहीं होता। सब धर्मों का अधर्मो से ही झगड़ा है। –  विनोबा भावे
3) मानव के कर्म ही उसके विचारों की सर्वश्रेष्ट व्याख्या हैं। – लॉक
4) दुःख भोगने से सुख के मूल्य का ज्ञान होता है। – शेख सादी

Saturday, October 14, 2017

By my pen ( WAH RI TANHAI )

WAH RI TANHAI




Wah ri tanhai duniya ne to 
mujhse muh Moda hi ...
Tune bhi Ruth kar ghunghant tani ...
Ghunghant hata aur mujhmein dekh ...
Ansoonon ka kuhara ...
Apni agosh mein le le...
Mujhe bahka thoda...
Duniya ne to mujhse ..
Kab ka hai muh Moda...
Kab ka hai muh moda.....