Monday, November 27, 2017

Kushasan (कुशासन...)

कुशासन

इसे शासन कहूँ या कुशासन,
व्यापार कहूं या भ्रष्टाचार !
जिसने हाँथ जोड़कर वोट लिया ,
वो हीं करता हम पर अत्याचार !

इक छोटी सी नौकरी के लिए ,
दिन रात हमे है पढ़ना पड़ता!
वो बिन कलम छुए सत्ता को पकड़े,
शब्दों से बस है लड़ना पड़ता !

जिस जोश से साथ दिया था तुमने ,
बापू और अन्ना के मुहीम को !
अब भी हटा नहीं है भ्रष्टाचार यहाँ,
आओ मिल कर बदलें देश की तक़दीर को !

घूसखोरी कालाधन और काला-बाजारियाँ ,
कब तक देश में हों बीमारी और महामारियां !
सूरत कब बदलेगी देश की तस्वीर की ,
जब बदलोगे नियत जालसाजी और फ़रेब की!

prakashp6692@gmail.com

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