Wednesday, December 6, 2017

Kimat 1 rupye ki (कीमत 1 रूपये की..)

 कीमत 1 रूपये की...

कई लोगों के जीवन में कई अलग - अलग अनुभव होते हैं. मेरे भी जीवन में कुछ ऐसे अनुभव हुए हैं जिनको भूल जाना हीं बेहतर है परन्तु ..कभी- कभी ये बातें अक्सर तन्हाई में याद आ हीं जाती है ! तो क्या अकेले सोच कर याद कर बर्दास्त कर लूं या फिर आप सभी से साझा कर लूं !
क्यूंकि मैं एक प्रसिद्ध हस्ती नहीं एक आम इंसान हूँ ..यदि मैंने आप सभी को अपना दोस्त समझ कर अपनी कुछ बातें साझा कर भी लीं तो क्या मेरी छवि धूमिल हो जाएगी ...मैं समझता हूँ ...नहीं ! तो मित्रों आइये एक छोटी सी घटना मैं आपसे साझा कर हीं लेता हूँ !
बात तब की है जब मैंने अी शिक्षा दीक्षा पूरी कर अपने सपनों का पीछा करता हुआ 2004 में दिल्ली पंहुचा ! मित्रों मैं अपने ट्रेड से सम्बंधित हीं जॉब चाहता था कंप्यूटर साइंस से बी.ई. करने के बाद जाहिर सी बात है आई .टी. सेक्टर में हीं प्रयास करना था ! परन्तु आपको मैं सच कहता हूँ मित्रों ,भले हीं मैंने कंप्यूटर साइंस से अभियांत्रिकी की शिक्षा प्राप्त की है परन्तु मैं अपने चार वर्षों में कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग लैंग्वेज पर बहुत अच्छी स्किल विकसित नही कर सका जैसा की मेरे साथ कुछ सहपाठियों ने विकसित किया ! शायद कुछ कहीं कमी मुझसे हीं हो गयी ! परन्तु मित्रों मैं इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं ! क्यूंकि मैं मानता हूँ आज कल के इस प्रतिस्पर्धात्मक युग में मात्र शिक्षा प्राप्त कर लेने से हीं व्यक्ति को सफलता का प्रमाण पत्र नहीं प्रा्त हो जाता , शिक्षा ग्रहण करने के बाद भी कई इम्तिान से गुजरना पड़ता है ! मैं भी गुजरा ...पहले मैं सरकारी नौकरी को अच्छा नहीं  समझता था और न हीं ज्यादा तवज्जो देता था !अतः मैं किसी अच्छी MNC में जॉब प्रा्त कर सकूँ ..बहुत कोशिश की ! एक दिन में 2 से 3 इंटरव्यू देना मेरे लिए आम बात हो गयी थी ! बस एक हीं धुन सर पर सवार थी की जल्दी से जल्दी मैं एक जॉब ले लूँ ! उस जॉब सर्च के दौरान हर महीने का खर्चा मेरे पिता जी के द्वारा हीं वहन किया जाता था ! अतः मुझे हर महीने लगभग ₹4000 या ₹ 5000 पिता जी बैंक के खाते में जमा  कर दिया करते थे ! जिसमें रूम का किराया और अपने खाने पीने का खर्चा शामिल था ! मेरे अतिरिक्त मेरे साथ दो मित्र और रहते थे ! एक का नाम भूपेंद्र सिंह और एक का नाम वरुण श्रीवास्तव था !भूपेंद्र को हम लोग प्यार से भूप्पी कहा करते थे ! भूपेंद्र ने मैकेनिकल और वरुण ने आईटी से अभियांत्रिकी की शिक्षा पूरी की थी !
उन दौरान हम दिल्ली के लक्ष्मीनगर के गली नंबर 10 में बंसल  जी के माकन में रहा करते थे और अपने - अपने भविष्य को सवारने मैं लगे हुए थे ! मुझे जहाँ तक याद है की जून महीेने का आखरी हफ्ता चल रहा था , महीना खत्म नहीं हुआ था ...पैसे लगभग ख़त्म हो गए थे ! अंतर्मुखी स्वभाव का होने के कारण मैं सुबह निकलते हुए भूप्पी से कह भी नहीं पाया की भाई मेरे पास पैसे आज उतने हीं बचे हैं जितने में मैं डी . टी. सी. बस से आने और जाने का किराया हीं दे पाउँगा ! हर रोज इस उम्मीद से इंटरव्यू के लिए निकलता था की बस आज तो पक्का समझो !पर ऐसा होता कहाँ था ...! उस दिन आप मान लें की मुश्किल मेरी जेब में 40 रूपये होंगे  ! उस वक़्त दिल्ली में मेट्रो नहीं चलती थी ! लक्ष्मीनगर रेड लाइट चौराहे से मैंने डी. टी. सी. बस पकड़ ली और टाइम्स ऑफ़ इंडिया के जॉब क्लासिफाइड के माध्यम से एक दो इंटरव्यू दे चूका था ! दोंनो इंटरव्यू में कहा गया If you got selected we will call you later...!                                                             लगभग दोपहर के 2 बजे होंगे , मैं करोल बाग के पास डी टी सी बस पकड़ने के लिए बस स्टॉप पर खड़ा था ! गर्मी बहुत भयंकर थी और सूर्य देवता आग उगले जा रहे थे ! मेरे जेब में मात्र 10 रूपये बचे थे और मुझे लक्ष्मीनगर भी पहुँचना था ! मैं ऊ.प्र. के एक छोटी सी जगह शक्तिनगर से हूँ ! मेरा जन्म और परवरिश मध्यम-वर्गीय परिवार में हुआ है ! मैं ये सब अचानक इसलिए बता रहा हूँ ! क्यूंकि तपतपाती गर्मी में अगर आप मेरी छोटी सी जगह के लोगों से पानी मांगे तो बड़े प्यार से लोग पीला देंगे , चाहे वो लोग पारिवारिक हों या व्यवसाई ! अपनी बात पर वापिस आता हूँ ...मुझे बहुत प्यास लग रही थी ...गाला प्यास के मारे सूखा जा रहा था , बस स्टॉप के पास एक पानी बेचने वाला जो साइकिल से जुड़ी हुई तीन पहियों वाली ट्रॉली लिए हुए था !उस वक़्त ये ज्यादातर 1 रूपये प्रति ग्लास पानी पिलाया करते थे और नींबू पानी 5 रूपये का ! अगर मैं  पैसे दे कर पानी पी लेता तब वापिस बस से जाने का किराया पूरा नहीं बचता..मैं पानी बेचने वाले को दूर से काफी देर तक देखता रहा ! तब कहीं हिम्मत जुटा कर उसके पास गया और कहा  ...भाई एक ग्लास पानी पीला दो आज तो 1रूपये नहीं दे पाउँगा पर अगर कल परसों में अगर इधर से गुजरूँगा तो 1 रूपये की बजाये तुम्हे 5 या 10 रूपये दे दूंगा ! पानी वाले ने मना कर दिया ! मैंने उसको कहा भी की भाई अगर मैंने तुम्हे पैसे दे भी दिए तो बस कंडक्टर को पूरे पैसे नहीं दे पाउँगा ! फिर भी उसने मना कर दिया ! मुझे बहुत बुरा महसूस हुआ और मैं बस स्टॉप पर लगी कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगा ..! एक रूपये को कमाने के लिए लोग कभी - कभी मानवता भी भूल जाते हैं !अगर पानी वाले ने मुझे ना नहीं कहा होता तो शायद मुझे 1रूपये की कीमत का पता जिंदगी भर नहीं चलता ..ध्यानवाद उसका !                                         उस दिन मुझे पता चला की मैंने जब भी कभी पढाई या तैयारी के दौरान मैंने माता - पिता से कहा की मुझे 5 हजार या 10 हजार की जरुरत है तो अगले हीं दिन मेरे खाते में वो जमा कर देते थे ! पर पिता जी कितनी मेहनत से वो पैसे कमाते होंगे ...उस वक़्त आभास हो गया ! एक रूपये की कीमत क्या होती है उस गर्मी की प्यास ने मुझे समझा दिया ! मित्रों मैं आपसे इतना हीं कहना चाहूंगा की माता पिता कभी भी अपने बच्चों को गलत सलाह नहीं देते ! यदि आप अध्ययनरत हैं तो कृपया अपने माता पिता की सलाह को सकारात्मक रूप से स्वीकार करते हुए आगे बढ़े ! मित्रों मैं आज अपने पैरों पर खड़ा हो पाया हूँ... तो निःसंदेह कहीं न कहीं मेरी मेहनत के बदौलत परन्तु मेरे माता - पिता का आशीर्वाद मेरे साथ नहीं होता तो शायद यहाँ तक का सफर भी मुझसे नहीं तय होता ! अतः आपसे अनुरोध है माता- पिता का कभी दिल न दुखाये और जिनकी वजह से आपका वजूद दुनिया में है ..कम से कम उनको सम्मान दें ! आपने  इतने
धीरज के साथ मुझे पढ़ा उसके लिए कोटि- कोटि धन्यवाद !
कृपया अपने विचार कमेंट में देना न भूले की आपको ये छोटी सी घटना कैसी लगी!                                                             आपका :प्रकाश         

3 comments:

  1. प्रिय प्रकाश जी, बहुत प्रेरणादायी संस्मरण! आपका ब्लोग पढकर बहुत अच्छा लगा। कृपया एर ब्लोग भी पढने का थोडा समय निकलिये और अपने विचारों से अवगत कराइये।

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    1. सर ,
      सादर नमस्कार ..धन्यवाद प्रथम comment...के लिए !आप मेरे प्रेरणास्रोत हैं ! आपके ब्लॉग को पढ़ कर मुझे भी कुछ- कुछ शक्तिपुंज मिल जाता है !
      भवनिष्ठ - प्रकाश !

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    2. कठिन वक्त में ही... जीवन के कटु सत्य का अनुभव होता है...

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