Monday, November 6, 2017

ऐ वतन !




तुझे याद करके ऐ वतन ,
चुप चाप मैं यूँ रोता रहा !

वो सरहदों पर जागते रहे ,
मैं चैन से बेख़ौफ़ सोता रहा !

सियासतों की आपसी जंग में ,
कुछ बेगुनाह से पिसते रहे !

जब भी वो आपस में लड़े ,
कुछ मासूम सिसकते से रहे !

जब भी लहू बिखरा सरहदों पर ,
कुछ घरों के लोग बिलखते से रहे !

मैं भी देखूँ तुम भी देखो जरा ,
बिखरे लहू हमारे सरहदों पर !

जो मुझ पर है गुजरी किससे कहूँ ,
इस पार या उस पार का जो बिखरा है लहू !

ऐ खुदा मुझ पर बस इतना करम कर दो ,
क़ायनात रचो इंसानियत मजहब कर दो !
                         
                          आपका :  प्रकाश.

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