Monday, November 27, 2017

Kushasan (कुशासन...)

कुशासन

इसे शासन कहूँ या कुशासन,
व्यापार कहूं या भ्रष्टाचार !
जिसने हाँथ जोड़कर वोट लिया ,
वो हीं करता हम पर अत्याचार !

इक छोटी सी नौकरी के लिए ,
दिन रात हमे है पढ़ना पड़ता!
वो बिन कलम छुए सत्ता को पकड़े,
शब्दों से बस है लड़ना पड़ता !

जिस जोश से साथ दिया था तुमने ,
बापू और अन्ना के मुहीम को !
अब भी हटा नहीं है भ्रष्टाचार यहाँ,
आओ मिल कर बदलें देश की तक़दीर को !

घूसखोरी कालाधन और काला-बाजारियाँ ,
कब तक देश में हों बीमारी और महामारियां !
सूरत कब बदलेगी देश की तस्वीर की ,
जब बदलोगे नियत जालसाजी और फ़रेब की!

prakashp6692@gmail.com

Sunday, November 12, 2017

कुछ मेरे बारे में !


   नमस्कार मित्रों ,
ब्लॉग "हिंदी साँची " पर आपका स्वागत है ! मुझे अच्छे से याद है जब पहली बार एक व्यंग कविता " चाँद पर पांव " क्षेत्रीय पत्रिका शक्ति - सन्देश में प्रकाशित हुई थी तब मैं महज़ आठवीं कक्षा में पढ़ता था ! जब मेरी कविता प्रकाशित हुई तो मुझे बहुत हर्ष का अनुभव हुआ, परन्तु शिक्षा भी जरुरी थी अब स्वतः कुछ लिखने को मन चाहता है ! परन्तु मेरा मानना है हम जीवन भर मिट्टी के कच्चे घड़े के समान और समाज हमेशा कुम्हार की तरह होता है ,जो हमे ठोक-पीट कर एक सुन्दर आकार देने का प्रयास करता है! अतः आप सभी से अनुरोध है कि कृपया मेरी खामियां बताते रहे ताकि उन्हें मैं सुधार सकूँ! आप Google पर prakashp6692.blogspot.in  टाइप करें और मेरी कुछ रचनाओं  से रु -बरु  हो जाएं! धन्यवाद !
आपका  -प्रकाश.

   
   

Monday, November 6, 2017

ऐ वतन !




तुझे याद करके ऐ वतन ,
चुप चाप मैं यूँ रोता रहा !

वो सरहदों पर जागते रहे ,
मैं चैन से बेख़ौफ़ सोता रहा !

सियासतों की आपसी जंग में ,
कुछ बेगुनाह से पिसते रहे !

जब भी वो आपस में लड़े ,
कुछ मासूम सिसकते से रहे !

जब भी लहू बिखरा सरहदों पर ,
कुछ घरों के लोग बिलखते से रहे !

मैं भी देखूँ तुम भी देखो जरा ,
बिखरे लहू हमारे सरहदों पर !

जो मुझ पर है गुजरी किससे कहूँ ,
इस पार या उस पार का जो बिखरा है लहू !

ऐ खुदा मुझ पर बस इतना करम कर दो ,
क़ायनात रचो इंसानियत मजहब कर दो !
                         
                          आपका :  प्रकाश.