Saturday, August 11, 2018

" ￰उत्कर्ष " नामक त्रैमासिक पत्रिका में मेरी कविता " कुशासन " को स्थान मिला ...


मित्रों ...हार्दिक अभिनन्दन और आभार ...

एक लेखक या सृजनकर्ता का सर्वोच्च पुरस्कार उसके लेखों की सराहना मात्र है ..वह उसे किसी पुरस्कार से बढ़ कर मानता है ...! हाल हीं में त्रैमासिक प्रकाशित होने वाली "उत्कर्ष" नामक पत्रिका जो पूर्वांचल बैंक , गोरखपुर से प्रकाशित होती है ...मेरी एक कविता जिसका शीर्षक. "कुशासन " है , को स्थान मिला ..जिससे मुझे हर्ष की अनुभूति हो रही है ... ! प्रकाशित कविता की छाया चित्र आपके समक्ष  प्रस्तुत है ...!





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Friday, June 22, 2018

लालबहादुर शास्त्री जी की जीवनी ...

लालबहादुर शास्त्री
भारत  के द्वितीय प्रधानमंत्री एवं स्वतंत्रता सेनानी
लालबहादुर शास्त्री (जन्म: 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय - मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकन्द), भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा।
I
भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। गोविंद बल्लभ पंत के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मन्त्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया। 1951 में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने 19521957 व 1962 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया।
जवाहरलाल नेहरू का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान 27 मई1964 को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधान मन्त्री का पद भार ग्रहण किया।
उनके शासनकाल में 1965 का भारत पाक युद्ध शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व चीन का युद्ध भारत हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।
ताशकन्द में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।
उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
संक्षिप्त जीवनी
लालबहादुर शास्त्री का जन्म 1904 में मुगलसराय (उत्तर प्रदेश) में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहाँ हुआ था। उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे अत: सब उन्हें मुंशीजी ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक (क्लर्क) की नौकरी कर ली थी।[1] लालबहादुर की माँ का नाम रामदुलारी था। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले प्यार में नन्हें कहकर ही बुलाया करते थे। जब नन्हें अठारह महीने का हुआ दुर्भाग्य से पिता का निधन हो गया। उसकी माँ रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर मिर्ज़ापुर चली गयीं। कुछ समय बाद उसके नाना भी नहीं रहे। बिना पिता के बालक नन्हें की परवरिश करने में उसके मौसा रघुनाथ प्रसाद ने उसकी माँ का बहुत सहयोग किया। ननिहाल में रहते हुए उसने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ में हुई। काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि मिलने के बाद उन्होंने जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द श्रीवास्तव हमेशा हमेशा के लिये हटा दिया और अपने नाम के आगे 'शास्त्री' लगा लिया। इसके पश्चात् शास्त्री शब्द लालबहादुर के नाम का पर्याय ही बन गया।
1928 में उनका विवाह मिर्जापुर निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ। ललिता शास्त्री से उनके छ: सन्तानें हुईं, दो पुत्रियाँ-कुसुम व सुमन और चार पुत्र-हरिकृष्ण, अनिल, सुनील व अशोक। उनके चार पुत्रों में से दो-अनिल शास्त्री और सुनील शास्त्री अभी हैं, शेष दो दिवंगत हो चुके हैं। अनिल शास्त्री कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता हैं जबकि सुनील शास्त्री भारतीय जनता पार्टी में चले गये।
राजनीतिक जीवन
"मरो नहीं, मारो!" का नारा लालबहादुर शास्त्री ने दिया जिसने क्रान्ति को पूरे देश में प्रचण्ड किया।
संस्कृत भाषा में स्नातक स्तर तक की शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् वे भारत सेवक संघ से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्रीजी सच्चे गान्धीवादी थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के जिन आन्दोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें 1921 का असहयोग आंदोलन1930 का दांडी मार्च तथा 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन उल्लेखनीय हैं।
दूसरे विश्व युद्ध में इंग्लैण्ड को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी ने आजाद हिन्द फौज को "दिल्ली चलो" का नारा दिया, गान्धी जी ने मौके की नजाकत को भाँपते हुए 8 अगस्त 1942 की रात में ही बम्बई से अँग्रेजों को "भारत छोड़ो" व भारतीयों को "करो या मरो" का आदेश जारी किया और सरकारी सुरक्षा में यरवदा पुणे स्थित आगा खान पैलेस में चले गये। 9 अगस्त 1942 के दिन शास्त्रीजी ने इलाहाबाद पहुँचकर इस आन्दोलन के गान्धीवादी नारे को चतुराई पूर्वक "मरो नहीं, मारो!" में बदल दिया और अप्रत्याशित रूप से क्रान्ति की दावानल को पूरे देश में प्रचण्ड रूप दे दिया। पूरे ग्यारह दिन तक भूमिगत रहते हुए यह आन्दोलन चलाने के बाद 19 अगस्त 1942 को शास्त्रीजी गिरफ्तार हो गये।
शास्त्रीजी के राजनीतिक दिग्दर्शकों में पुरुषोत्तमदास टंडन और पण्डित गोविंद बल्लभ पंत के अतिरिक्त जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे। सबसे पहले 1929 में इलाहाबाद आने के बाद उन्होंने टण्डनजी के साथ भारत सेवक संघ की इलाहाबाद इकाई के सचिव के रूप में काम करना शुरू किया। इलाहाबाद में रहते हुए ही नेहरूजी के साथ उनकी निकटता बढी। इसके बाद तो शास्त्रीजी का कद निरन्तर बढता ही चला गया और एक के बाद एक सफलता की सीढियाँ चढते हुए वे नेहरूजी के मंत्रिमण्डल में गृहमन्त्री के प्रमुख पद तक जा पहुँचे। और इतना ही नहीं, नेहरू के निधन के पश्चात भारतवर्ष के प्रधान मन्त्री भी बने।
प्रधान मन्त्री
उनकी साफ सुथरी छवि के कारण ही उन्हें 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने अपने प्रथम संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि उनकी शीर्ष प्राथमिकता खाद्यान्न मूल्यों को बढ़ने से रोकना है और वे ऐसा करने में सफल भी रहे। उनके क्रियाकलाप सैद्धान्तिक न होकर पूर्णत: व्यावहारिक और जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप थे।
निष्पक्ष रूप से यदि देखा जाये तो शास्त्रीजी का शासन काल बेहद कठिन रहा। पूँजीपति देश पर हावी होना चाहते थे और दुश्मन देश हम पर आक्रमण करने की फिराक में थे। 1965 में अचानक पाकिस्तान ने भारत पर सायं 7.30 बजे हवाई हमला कर दिया। परम्परानुसार राष्ट्रपति ने आपात बैठक बुला ली जिसमें तीनों रक्षा अंगों के प्रमुख व मन्त्रिमण्डल के सदस्य शामिल थे। संयोग से प्रधानमन्त्री उस बैठक में कुछ देर से पहुँचे। उनके आते ही विचार-विमर्श प्रारम्भ हुआ। तीनों प्रमुखों ने उनसे सारी वस्तुस्थिति समझाते हुए पूछा: "सर! क्या हुक्म है?" शास्त्रीजी ने एक वाक्य में तत्काल उत्तर दिया: "आप देश की रक्षा कीजिये और मुझे बताइये कि हमें क्या करना है?"
शास्त्रीजी ने इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और जय जवान-जय किसान का नारा दिया। इससे भारत की जनता का मनोबल बढ़ा और सारा देश एकजुट हो गया। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।
ब्रीगेडियर हरी सिंह, जो उस समय प्रथम भारतीय बख्तरबंद डिविजन की १८वीं यूनिट में सैनिक थे, लाहौर (पाकिस्तान) में बरकी पुलिस थाने के बाहर तैनात]] भारत पाक युद्ध के दौरान ६ सितम्बर को भारत की १५वी पैदल सैन्य इकाई ने द्वितीय विश्व युद्ध के अनुभवी मेजर जनरल प्रसाद के नेत्तृत्व में इच्छोगिल नहर के पश्चिमी किनारे पर पाकिस्तान के बहुत बड़े हमले का डटकर मुकाबला किया। इच्छोगिल नहर भारत और पाकिस्तान की वास्तविक सीमा थी। इस हमले में खुद मेजर जनरल प्रसाद के काफिले पर भी भीषण हमला हुआ और उन्हें अपना वाहन छोड़ कर पीछे हटना पड़ा। भारतीय थलसेना ने दूनी शक्ति से प्रत्याक्रमण करके बरकी गाँव के समीप नहर को पार करने में सफलता अर्जित की। इससे भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुँच गयी। इस अप्रत्याशित आक्रमण से घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिये कुछ समय के लिये युद्धविराम की अपील की।
आखिरकार रूस और अमरिका की मिलीभगत से शास्त्रीजी पर जोर डाला गया। उन्हें एक सोची समझी साजिश के तहत रूस बुलवाया गया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। हमेशा उनके साथ जाने वाली उनकी पत्नी ललिता शास्त्री को बहला फुसलाकर इस बात के लिये मनाया गया कि वे शास्त्रीजी के साथ रूस की राजधानी ताशकन्द न जायें और वे भी मान गयीं। अपनी इस भूल का श्रीमती ललिता शास्त्री को मृत्युपर्यन्त पछतावा रहा। जब समझौता वार्ता चली तो शास्त्रीजी की एक ही जिद थी कि उन्हें बाकी सब शर्तें मंजूर हैं परन्तु जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाना हरगिज़ मंजूर नहीं। काफी जद्दोजहेद के बाद शास्त्रीजी पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर ताशकन्द समझौते के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करा लिये गये। उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर किये थे कि वे हस्ताक्षर जरूर कर रहे हैं पर यह जमीन कोई दूसरा प्रधान मन्त्री ही लौटायेगा, वे नहीं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घण्टे बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही उनकी मृत्यु हो गयी। यह आज तक रहस्य[2] बना हुआ है कि क्या वाकई शास्त्रीजी की मौत हृदयाघात के कारण हुई थी? कई लोग उनकी मौत की वजह जहर[3] को ही मानते हैं।
शास्त्रीजी को उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये आज भी पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है। उन्हें मरणोपरान्त वर्ष 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
रहस्यपूर्ण मृत्यु
मुंबई में शास्त्रीजी की प्रतिमा
ताशकन्द समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद उसी रात उनकी मृत्यु हो गयी। मृत्यु का कारण हार्ट अटैक बताया गया। शास्त्रीजी की अन्त्येष्टि पूरे राजकीय सम्मान के साथ शान्तिवन (नेहरू जी की समाधि) के आगे यमुना किनारे की गयी और उस स्थल को विजय घाट नाम दिया गया। जब तक कांग्रेस संसदीय दल ने इन्दिरा गान्धी को शास्त्री का विधिवत उत्तराधिकारी नहीं चुन लिया, गुलजारी लाल नन्दा कार्यवाहक प्रधानमन्त्री रहे।[4]
शास्त्रीजी की मृत्यु को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जाते रहे। बहुतेरे लोगों का, जिनमें उनके परिवार के लोग भी शामिल हैं, मत है कि शास्त्रीजी की मृत्यु हार्ट अटैक से नहीं बल्कि जहर देने से ही हुई।[2] पहली इन्क्वायरी राज नारायण ने करवायी थी, जो बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गयी ऐसा बताया गया। मजे की बात यह कि इण्डियन पार्लियामेण्ट्री लाइब्रेरी में आज उसका कोई रिकार्ड ही मौजूद नहीं है।[5] यह भी आरोप लगाया गया कि शास्त्रीजी का पोस्ट मार्टम भी नहीं हुआ। 2009 में जब यह सवाल उठाया गया तो भारत सरकार की ओर से यह जबाव दिया गया कि शास्त्रीजी के प्राइवेट डॉक्टर आर०एन०चुघ और कुछ रूस के कुछ डॉक्टरों ने मिलकर उनकी मौत की जाँच तो की थी परन्तु सरकार के पास उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। बाद में प्रधानमन्त्री कार्यालय से जब इसकी जानकारी माँगी गयी तो उसने भी अपनी मजबूरी जतायी।[2]
शास्त्रीजी की मौत में संभावित साजिश की पूरी पोल आउटलुक नाम की एक पत्रिका ने खोली।[5][5] 2009 में, जब साउथ एशिया पर सीआईए की नज़र (अंग्रेजी: CIA's Eye on South Asia) नामक पुस्तक के लेखक अनुज धर ने सूचना के अधिकार के तहत माँगी गयी जानकारी पर प्रधानमन्त्री कार्यालय की ओर से यह कहना कि "शास्त्रीजी की मृत्यु के दस्तावेज़ सार्वजनिक करने से हमारे देश के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध खराब हो सकते हैं तथा इस रहस्य पर से पर्दा उठते ही देश में उथल-पुथल मचने के अलावा संसदीय विशेषधिकारों को ठेस भी पहुँच सकती है। ये तमाम कारण हैं जिससे इस सवाल का जबाव नहीं दिया जा सकता।"।[2]
सबसे पहले सन् 1978 में प्रकाशित[6] एक हिन्दी पुस्तक ललिता के आँसू[7] में शास्त्रीजी की मृत्यु की करुण कथा को स्वाभाविक ढँग से उनकी धर्मपत्नी ललिता शास्त्री के माध्यम से कहलवाया गया था। उस समय (सन् उन्निस सौ अठहत्तर में) ललिताजी जीवित थीं।[8]
यही नहीं, कुछ समय पूर्व प्रकाशित एक अन्य अंग्रेजी पुस्तक में लेखक पत्रकार कुलदीप नैयर ने भी, जो उस समय ताशकन्द में शास्त्रीजी के साथ गये थे, इस घटना चक्र पर विस्तार से प्रकाश डाला है। गत वर्ष जुलाई 2012 में शास्त्रीजी के तीसरे पुत्र सुनील शास्त्री ने भी भारत सरकार से इस रहस्य पर से पर्दा हटाने की माँग की थी।[9]
सन्दर्भ : विकिपीडिया  ...

Thursday, June 21, 2018

Famous Quotes By Subhas Chandra Bose In Hindi ..



मित्रों नमस्कार ,
आशा करता हूँ आप सब कुशल पूर्वक होंगे.. मैंने यह स्वयं आभास किया है कि जब भी हम असफलता का स्वाद चखते हैं , और अंतर्मन से दुखी होते हैं .. कई बार हमारे महापुरुषों की जीवनी या उनके द्वारा कहे गए कथनों को स्मरण करने मात्र से मन को काफी बल मिलता है ! ..

अतः प्रस्तुत है ... महान स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस जी द्वारा कहे गए QUOTES ...



Indian nationalist leader Subhadh Chandra Bose  and Adolf Hitler , Berlin ,Germany ....



1897- 1945 Politiker, indienVorsitzender 



                      
Participants of the Greater East Asia Conference ...





असफलताएं कभी कभी सफलता की स्तम्भ होती हैं..


 तुम मुझे खून दो ,मैं तुम्हें आजादी दूंगा..



 मुझमे जन्मजात प्रतिभा तो नहीं थी,
 परन्तु कठोर परिश्रम से बचने की प्रवृति मुझमे कभी नहीं रही...


 हमारी राह भले ही भयानक और पथरीली हो,
 हमारी यात्रा चाहे कितनी भी कष्टदायक  हो, 
 फिर भी हमें आगे बढ़ना ही है..
 सफलता का दिन दूर हो सकता है, पर उसका आना अनिवार्य है....



 मेरे  मन  में  कोई  संदेह  नहीं  है,
  कि हमारे देश की प्रमुख समस्यायों
 जैसे गरीबी ,अशिक्षा , बीमारी , कुशल उत्पादन एवं वितरण का समाधान,
  सिर्फ समाजवादी तरीके से ही की जा सकती है ....


आज हमारे अन्दर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए,
 मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके..
 एक शहीद की मौत मरने की इच्छा,
 ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशश्त हो सके...


 ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं.
 हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी,
 हमारे अन्दर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए...



 मैं संकट एवं विपदाओं से भयभीत नहीं होता.
 संकटपूर्ण दिन आने पर भी मैं भागूँगा नहीं,
 वरन आगे बढकर कष्टों को सहन करूँगा



 मुझे यह नहीं मालूम की,
 स्वतंत्रता के इस युद्ध में हममे से कौन कौन जीवित बचेंगे.
 परन्तु में यह जानता हूँ, अंत में विजय हमारी ही होगी.



 संघर्ष ने मुझे मनुष्य बनाया,
 मुझमे आत्मविश्वास उत्पन्न हुआ ,जो पहले नहीं था....


 कष्टों का निसंदेह एक आंतरिक नैतिक मूल्य होता है...



 यदि आपको अस्थायी रूप से झुकना पड़े,
तब वीरों की भांति झुकना..

                                        स्रोत : इंटरनेट !

Thursday, June 7, 2018

नमस्कार मित्रों ...अपने प्रधान कार्यालय  
में सहयोगी मित्रों के साथ कुछ यादगार पल  !








Tuesday, March 20, 2018

केदारनाथ सिंह जी ( हिंदी कवि) को भावपूर्ण श्रद्धांजलि ! जग गए हो ? ...हाँ ..लेकिन तुम्हारी बातों में अभी नींद है !

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।


सुप्रभात मित्रों ...
 आशा करता हूँ आप सब कुशलपूर्वक होंगे ! मित्रों क्या आपने ये कभी सोचा की ये मूल्यवान जीवन जो हमे मिला है उसे सार्थक तरीके से कैेसे जिया जाये ...!
    काफी भाग दौड़ की जिंदगी हो गई है ..हम सब कहीं न कहीं अपने  मार्ग से  भटक से गए हैं ..पर फिर भी गीता की पंक्तियाँ जब याद आती हैं मैं फिर से सजग हो जाता हूँ ...कृपया आप भी इस पंक्ति का स्मरण करें और अपने कर्मों के प्रति सजग रहे ...

 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥



भावार्थ : तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो!



क्या आप भी अपने कार्य के प्रति सजग हैं ..स्वयं मुल्यांकन करते रहना चाहिए !
महाभारत काल में अर्जुन के सारथी तो श्री कृष्ण थे इसलिए पांडवों की जीत संभव हुई ! ठीक इसी प्रकार हमारे जीवन में भी मार्गदर्शक ( सारथी ) होना बहुत आवश्यक है ! और वक़्त बदलने के साथ - साथ हमारे सारथी भी बदल जाते हैं जैसे ... बचपन में प्राथमिक शिक्षा से पहले स्वयं माता - पिता , अध्ययन काल में शिक्षक गण ! वैसे देखा जाये तो माता -पिता जीवन पर्यन्त सारथी होते हैं ! लोग ओलम्पिक में स्वर्ण पदक
एवं रजत पदक जीत लाते हैं यह सब एक अच्छा सारथी होने से हीं संभव हो पाता है ! अतः यदि आपको अपने जीवन या किसी भी जीवन के मोड़ पर सारथी चुनना पड़े तो ज़रा सोच - समझ कर हीं चुनें ...क्यूंकि सफलता वहीँ छुपी है !

( मौलिक व अप्रकाशित )
आपका  : प्रकाश  !

Thursday, March 1, 2018






*आपको और आप के परिवार को होली के पावन अवसर पर मेरी और मेरे परिवार की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं !! होली का यह त्यौहार आपके जीवन को खुशीयो के रंग से सराबोर कर दे , मेरी ईश्वर से यही कामना है!!*
🙏🙏🌹🌹🌹🙏🙏







Sunday, February 18, 2018

एक नज़र बैंकिंग के हाल पर भी ...!

जैसा कि आप जानते हैं सरकार अपने ज्यादातर काम ठेके पर देने लगी है और सब सरकारी नौकरियां ठेके पर दी जा रही हैं, ठेके पर काम करने वालों को ठेकेदार 10-15 हज़ार Rs देता है और उसी में वो जैसे तैसे गुजरा करते हैं। बैंकिंग सेक्टर ही एक ऐसा सेक्टर बचा है जहाँ सिस्टम access वाली नौकरियाँ ठेके पर नहीं दी जा सकती क्योंकि ठेके पर काम करने आया व्यक्ति कभी भी फ्रॉड करके भाग सकता है। इसलिए सरकार धीरे धीरे से बैंक कर्मचारियों के वेतन में महँगाई के मुताबिक वृद्धि नहीं कर रही है। 
अब मैं आपको भारत के बैंकिंग संरचना के बारे में बताता हूँ।
भारत की बैंकिंग के कुल हिस्से का लगभग 70% सरकारी बैंकों से होता है तथा लगभग 90% जनता (खाते के आधार पर) इनकी जद में आती है। सरकारी बैंकों में लगभग 10 लाख कर्मचारी हैं।
जैसा कि आप जानते हैं केंद्रीय कर्मचारियों के लिए हर 10 साल में सरकार एक pay commission लागू करती है, वो तय करता है कि कर्मचारियों को कितना वेतन दिया जाय?
लेकिन बैंकों में ऐसा कोई कमीशन नहीं होता, वहाँ हर 5 साल में वेतन वृद्धि आपसी सहमति (बैंकों की unions और सरकार की तरफ से Indian banks assciation(IBA)). इस आपसी सहमति को bipartite settlement (द्विपक्षीय समझौता) कहते हैं।
IBA से बातचीत करने के लिए बैंकों की यूनियंस ने एक कॉमन प्लेटफार्म बनाया है जिसका नाम है united forum of bank unions (UFBU), जो कि negotiation का काम करती है।
पिछले आप जितने भी समझौते देखोगे उसमे काम से कम 3 साल का delay रहा है, यानी 5 साल में जो बढ़ी हुई सैलरी मिलनी थी वो सिर्फ 2 साल ही मिल पाती हैं और जो arrears मिलता है उसमें से 4% यूनियंस को देना पड़ता है। 
पिछली बार का समझौता 2012 में होना था लेकिन हुआ 2015 में। इस बार का समझौता Nov 2017 में होना था लेकिन अभी तक नहीं हुआ।
एक समय था जब बैंक अधिकारी की सैलरी IAS अधिकारी से ज्यादा थी, लेकिन जैसे जैसे settlements होते गए सैलरी काम होती गयी।
आज बैंक अधिकारी की सैलरी केंद्र के क्लर्क के बराबर है और बैंक क्लर्क की सैलरी राज्य सरकार के भृत्य के बराबर है। आप सोचिये एक बैंक का क्लर्क अपने आप को एक भृत्य से भी कम सैलरी पाकर कैसा सोचता होगा??
कुछ कारण जिनके कारण सैलरी नहीं बढ़ रही-
1. यूनियन के नेताओ का सदस्यों की बजाय मैनेजमेंट से ज्यादा मेल मिलाप होना।
2. ऐसा सुनने में आता है कि यूनियन के नेताओं और उनके रिश्तेदारों को बैंकों की तरफ से ठेके मिलते हैं outsourced projects के (कोई ठोस सबूत नहीं है इसका)
3. IBA, हर बार बैंको को हो रहे घाटे का या बढ़ रहे NPA का तर्क देकर समझौता कम सैलरी पर सेट करता है। वास्तव में अगर आप देखे तो कुल NPA में से 70% कॉरपोरेट्स के हैं जिनके लिए सामान्य सी ब्रांच में बैठे अधिकारी/कर्मचारी जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि मैनेजमेंट के बड़े लोग और वो कमिटियां हैं जिन्होंने बड़े लोन दिए। अगर आप औसतन अंदाजा लगाए तो इस भारी भरकम NPA के लिए बमुश्किल 1% लोग जिम्मेदार हैं जिसकी सज़ा बाकी 99% बैंकर्स क्यों भुगते?
और भी कई कारण हैं !
जब भी समय निकालें कृपया आप एक बार कोई भी सरकारी बैंक की ब्रांच में जाइये वहां आपको 5-6 लोग काम करते हुए मिलेंगे और कुछ ग्रामीण branches तो ऐसी हैं जहां 2-3 लोग ही होते हैं और काम देखिए बैंकर के नीचे:-

1. Lok Adalats
2. ATM management
3. Clearing
4. Pension disbursement
5. Death claims 
6. Complaints
7. Filing recovery suits
8. Filing EPs
9. RTI applications
10. Fresh NPA investigation
11. QMC investigation
12. CERSAI registration
13. SARFAESI action
14. Taking Possession
15. Fraud reports
16. Seizure of moveables
17. Auctioning of seized items
18. Auctioning of jewels 
19. Agriculture loans 
20. OTS settlements
21. SB account activations
22. Current accounts
23. LIC policies
24. OD facilities
25. PPF accounts
26. E-KYC
27. NRI customers 
28. Product marketing
29. Jewel loans
30. Mobile banking 
31. Net-banking 
32. Corporate Banking 
33. Housing loans
34. Vehicle loans
35. Educational loans
36. Compliance to RO/HO 
37. Advocates review
38. Valuers review
39. Seizure agents review
40. Jewel appraisers review
41. Bank Adalats
42. TDS/tax management
43. Cash management
44. Empaneling advocates
45. Empaneling valuers
46. Empaneling seizure agents
47. Empaneling jewel appraisers
48. Pnpa followup
49. Quarter end reports
50. Year end reports
51 cif De duplication
52 Self Audit
53 Jandhan yojna
54 Mudra Loan
55 General Insurance
56 aadhaar seeding
57 pmay
58 stand up India
59 pmjby
60 pmsby
61. Net banking failure.
62. ATM failed txn.
63. Maintaining rcrds of ECS return.
64. Soil notes n pre 2005 notes return
65. Repairing of passbook printng kiosk
67. Atm machine problems
68. Managing leave and deputation
69. Responsiblity rectify Failure link.
70. Attending call from zo fgm office ho and Customers
71. Reply on unnecessary queries like Where does my ECS amount go, why atm hotlisting charged debited..🙄
72 rtgs neft failure
73. Edu loan subsidy
74 stock audit
75 Locker SERVICE
76 unit visit
77 asset verification
78. stock statement
79. Filling up diposit and withdrawal slips of illiterate customers
80 banker account balancing
81. Phn service/ mail service to customers
82. Compliance report
83 cash remittances
84 pre sanctions visit
85 post sanctions visit
86 gold bond, apy
87. Upi mobile banking general card
88. cctv not working 
89. Electricity bill rent water bill
90. Replying Explanatory Letter 
91. Following up of complaint lodged by making calls in regular intervls
92. Maintaining cheque return register....
93. Concurrent audit ho inspection
94. Signature scanning
95. Loging complaint for not allowing to modify like DOB. N chk ready made reply "please contact concerned section..".
96. Giving clarification to fellow coligs that what we want to to say
97. LPG subsidiary related queries
98. Remembering passwords of all Systems software 
99. Answering questions like Why bank cant isue pan card?
100. Removing pins stuck in the keyboard 😀😀
101 Promoting Digital Banking 

Along with this, branch employee has to read and reply the emails from head office, Regional Office, customers and so on.....