Tuesday, March 20, 2018
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
सुप्रभात मित्रों ...
आशा करता हूँ आप सब कुशलपूर्वक होंगे ! मित्रों क्या आपने ये कभी सोचा की ये मूल्यवान जीवन जो हमे मिला है उसे सार्थक तरीके से कैेसे जिया जाये ...!
काफी भाग दौड़ की जिंदगी हो गई है ..हम सब कहीं न कहीं अपने मार्ग से भटक से गए हैं ..पर फिर भी गीता की पंक्तियाँ जब याद आती हैं मैं फिर से सजग हो जाता हूँ ...कृपया आप भी इस पंक्ति का स्मरण करें और अपने कर्मों के प्रति सजग रहे ...
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥


भावार्थ : तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो!


क्या आप भी अपने कार्य के प्रति सजग हैं ..स्वयं मुल्यांकन करते रहना चाहिए !
महाभारत काल में अर्जुन के सारथी तो श्री कृष्ण थे इसलिए पांडवों की जीत संभव हुई ! ठीक इसी प्रकार हमारे जीवन में भी मार्गदर्शक ( सारथी ) होना बहुत आवश्यक है ! और वक़्त बदलने के साथ - साथ हमारे सारथी भी बदल जाते हैं जैसे ... बचपन में प्राथमिक शिक्षा से पहले स्वयं माता - पिता , अध्ययन काल में शिक्षक गण ! वैसे देखा जाये तो माता -पिता जीवन पर्यन्त सारथी होते हैं ! लोग ओलम्पिक में स्वर्ण पदक
एवं रजत पदक जीत लाते हैं यह सब एक अच्छा सारथी होने से हीं संभव हो पाता है ! अतः यदि आपको अपने जीवन या किसी भी जीवन के मोड़ पर सारथी चुनना पड़े तो ज़रा सोच - समझ कर हीं चुनें ...क्यूंकि सफलता वहीँ छुपी है !
( मौलिक व अप्रकाशित )
आपका : प्रकाश !
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